Sunday, December 13, 2009

'शहरी बंदरों' के तबादले पर चिंता

बंदर
बंदरों ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है
बंदरों की बंदरबाँट को लेकर मध्यप्रदेश और दिल्ली के बीच चल रही तनातनी अब और बढ़ गई है. बात यहाँ तक बढ़ गई है कि कि मध्यप्रदेश को अपनी फरियाद लेकर सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा है.

दरअसल, दिल्ली निवासी 300 बंदरों को मध्यप्रदेश तड़ीपाड़ करने का आदेश दिल्ली सरकार की अर्ज़ी पर उच्चतम न्यायालय ने ही जारी किया था.

मध्यप्रदेश के मुख्य वन संरक्षक पीवी गंगोपाध्याय का कहना है कि उन्होंने अपने वकील द्वारा अदालत से अपने आदेश पर पुनर्विचार करने की प्रार्थना की है.

मुख्य वन संरक्षक का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने बंदरों को स्थानांतरित करने की अर्ज़ी डालते समय दिल्ली सरकार ने इस सच को छिपाया है कि मध्यप्रदेश पहले ही दिल्ली के 250 बंदरों को अपने यहाँ पनाह दे चुका है.

साथ ही राज्य का कहना है कि कोर्ट में बंदरों के स्थानांतरण पर हुए विचार-विमर्श में उसका पक्ष सामने ही नहीं आ पाया.

अब राज्य सरकार ने दिल्ली से स्थानांतरित पिछले ग्रुप को ग्वालियर के समीप पालपुर कुनों के जंगल में छोड़े जाने और उससे पैदा हुई दिक्कतों को कोर्ट के सामने रखा है.

वन विभाग इस बात से परेशान है कि शहर से लाए गए इन जानवरों को बीमारियाँ हो सकती है जो जंगल के दूसरे जानवरों में फैलकर पूरे पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकती है.

'सज़ा मध्यप्रदेश को क्यों?'

पशु विशेषज्ञ कहते हैं कि हो सकता है इनमें बीमारी से लड़ने की ताकत पैदा हो गई हो लेकिन जंगली जानवरों में इस तरह की रोग प्रतिरोधी क्षमता का होना मुमकिन नहीं, क्योंकि उनका सामना इन बीमारियों से कभी हुआ ही नहीं.

मध्यप्रदेश वन विभाग इसलिए भी अधिक सत्तर्क रहना चाहता है क्योंकि वह पालपुर कुनो को एशियाई शेरों के लिए विशेष पार्क के तौर पर विकसित करना चाहता है.

एशियाई शेर भारत में फिलहाल सिर्फ़ गुजरात के गीर के जंगलों में पाए जाते हैं.

दो साल पहले कुनो में छोड़े गए दिल्ली के बंदर आबादी में जाकर उत्पात मचाते हैं. कई बार इतना कि पुलिस को मामला अपने हाथ में लेना पड़ा है.

विधानसभा में मुरैना और शिवपुरी में मचे इस 'बंदर आतंक' पर सवाल भी उठ चुके हैं कि दिल्ली में उत्पात समाप्त करने के लिए मध्यप्रदेश को क्यों सजा भुगतनी पड़ रही है?

अधिकारी कहते हैं कि जब पहले लाए गए 250 बंदरों ने विश्व कुख्यात चम्बल इलाके में उत्पात मचा दिया है तो दिल्ली के छँटे 300 बंदर और आ गए तो न जाने क्या होगा.


हिमाचल में बंदरों की नसबंदी होगी

बंदर का बच्चा
सिर्फ़ नर बंदरों की नसबंदी की जाएगी

हिमाचल प्रदेश में बंदरों की नसबंदी की तैयारी की जा रही है ताकि उनकी बढ़ती जनसंख्या को रोका जा सके.

अधिकारियों का कहना है कि नर बंदरों की बढ़ती संख्या और उनके बढ़ते उत्पातों के चलते यह क़दम उठाना ज़रुरी हो गया है.

प्रदेश के अधिकारियों को इसके लिए अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति का इंतज़ार है.

इस समय नज़र मादा बंदरों पर नहीं सिर्फ़ नर बंदरों पर है.

एक वन अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि नसबंदी का ऑपरेशन करते वक्त बंदरों के शरीर में एक माइक्रोचिप भी लगा दिया जाएगा जिससे कि ऑपरेशन के बाद उनकी पहचान हो सके.

उनका कहना है कि शोध से पता चला है कि मादा बंदरों की बजाए नर बंदरों की नसबंदी ज़्यादा प्रभावशाली होती है.

एक बंदर के नसबंदी ऑपरेशन और माइक्रोचिप लगाने में साढ़े सत्रह सौ रुपए का ख़र्च आएगा.

संख्या का अनुमान नहीं

भारत में पाए जाने वाले बंदरों की औसत उम्र 17 साल होती है.

फिलहाल बंदरों की जनसंख्या का सही सही अंदाज़ा नहीं है लेकिन उनकी संख्या बढ़ने का अनुमान लगाया गया है.

अधिकारियों का कहना है कि बंदरों का उत्पात भी लगातार बढ़ रहा है.

वे झुंड में होते हैं और राह चलते लोगों से खाने पीने का सामान छीन लेते हैं.

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के लोगों ने बंदरों की नसबंदी के फ़ैसले का स्वागत किया है.


बेकाबू बंदरों को पकड़ने का अदालती निर्देश
बंदर
बंदर कई सरकारी दफ़्तरों में उत्पात मचा रहे हैं
दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे तीस हज़ारी अदालत को बंदरों के उत्पात से एक महीने के अंदर मुक्ति दिलाएँ.

अदालत ने कहा कि बंदरों की वजह से अदालत के कामकाज पर काफ़ी असर पड़ रहा है और उन्हें तत्काल पकड़ा जाना ज़रूरी है.

जिस याचिका पर अदालत ने यह निर्देश दिया है उसमें शिकायत की गई है कि बंदर वकीलों और मुवक्किलों पर हमले कर रहे हैं और उनका सामान छीन रहे हैं जिससे आतंक का माहौल पैदा हो गया है.

दिल्ली में सिर्फ़ तीस हज़ारी अदालत ही नहीं, पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बंदरों से परेशान है और उन्हें भगाने की कोशिशें अब तक नाकाम रही हैं.

याचिका दायर करने वाले निर्मल चोपड़ा ने बताया कि तीस हज़ारी अदालत के वकीलों ने कई बार राज्य सरकार से अनुरोध किया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई इसलिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा.

तीस हज़ारी एक बहुत बड़ा अदालत परिसर है जिसमें एक साथ 160 से अधिक अदालतें लगती हैं.

धमकी

जज विजेंद्र जैन और रेखा शर्मा ने अपने निर्देश में नगर निगम से कहा है कि "अगर आप लोग बंदरों को नहीं पकड़ सकते तो अदालत को बंद कर देना ही बेहतर रहेगा."

लेकिन इस काम में बहुत दिक्कतें आ रही हैं, एक बंदर पकड़ने वाले पर तो बंदरों ने ऐसा हमला किया उन्हें 72 टाँके लगाने पड़े. बंदर पकड़ने वाले इस काम का ठेका लेने को तैयार नहीं दिख रहे हैं.

दिल्ली के बंदर लोगों पर घरों में घुसकर हमले करने के लिए बदनाम हैं लेकिन पर्यावरणवादियों का कहना है कि बस्तियाँ बसाने के लिए बंदरों के घर उजाड़े गए हैं इसलिए बंदर आवासीय इलाक़ों में रहते हैं.

ऐसी अनेक घटनाएँ हो चुकी हैं जब बंदरों ने सरकारी कामकाज को बुरी तरह प्रभावित किया है, टेलीफ़ोन के तार नोचने, सरकारी दस्तावेज़ फाड़ने और तोड़फोड़ करने में इन्हें कुछ ख़ास मज़ा आता है.

दो वर्ष पहले ही दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने पाया कि उनके बेहद गोपनीय दस्तावेज़ यहाँ-वहाँ बिखरे पड़े हैं, यह भी बंदरों का ही कारनामा था.

पिछले दिनों एक कैबिनेट मंत्री अपने सरकारी बंगले में कई महीने तक घुस नहीं सके क्योंकि वहाँ बंदरों ने मोर्चाबंदी कर रखी थी.

हाल ये है राष्ट्रपति भवन को बंदरों से बचाने के लिए वहाँ डरावनी शक्ल वाले कई लंगूर तैनात किए गए हैं जो रीसस प्रजाति के इन बंदरों को भगाते रहते हैं.

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